जीवन में कभी सोचा नहीं था कि कविता कर सकता हूँ। मजबूरी में करनी पड़ी तो अच्छा खासा कुण्डलिया छंद बन गया। कुछ खास तो नहीं पर पहले प्रयास के हिसाब से तो ठीक ही लगता है। क्यों?
सवाल है कुछ लिखने का, विचित्र मन का भाव
कविता लिखने के लिये, खा रहा मैं ताव
खा रहा मैं ताव, रह गया हक्का-बक्का
जाम हो गया सर का, घूमने वाला चक्का
उसको चालू करने को, नोच रहा मैं बाल
बन गई कुण्डलिया, हल हुआ सवाल
1 टिप्पणी:
अच्छा है।
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