शायद पहली या दूसरी क्लास में ये कविता पढ़ी थी। जाने कैसे अभी तक इसके कुछ अंश याद हैं। अच्छी लगती है और आज की किसी पाठ्य पुस्तक में दिखती नहीं। मैने शायद "बाल भारती" में पढ़ी थी। खोने या भूलने के डर से इसे विश्वजाल में डाल रहा हूँ।
अम्मा ज़रा देख तो ऊपर,
चले आ रहे हैं बादल।
गरज रहे हैं बरस रहे हैं,
दीख रहा है जल ही जल।।
हवा चल रही क्या पुरवाई,
झूम रही डाली डाली।
ऊपर काली घटा घिरी है,
नीचे फैली हरियाली।।
भीग रहे हैं खेत बाग वन,
भीग रहे हैं घर आँगन।
बाहर निकलूँ मैं भी भीगूँ,
चाह रहा है मेरा मन।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें